पास ही तो है तू मेरे हरदम
फिर भी तेरी याद आ रही है.तेरी बांसुरी बज नही रही पर
उसकी धुन मुझसे दूर जा रही है
सामने तो बैठा है तू
फिर दूर क्यों लग रहा है.
देख रही हूँ सूरत तेरी पर
मिलने का दिल कर रहा है.
तेरी मिलन में भी एक विरह है
और विरह में भी मिलन का अहसास.
मै हो गई हूँ बाबली या फिर
मेरा तुझसे है कोई रिश्ता ही ख़ास.
कभी पास होके भी छुप जाता है
कभी दूर होके भी नज़र आता है .
पर्दा मेरी आँखों पे पडा है या
नटवर तू मुझे ऐसे नचाता है.
3 comments:
बस यही तो उसकी लीला है…………।जैसे चाहे नाच नचा ले………………बहुत सुन्दर भाव भरे हैं।
आँखों में तो पर्दा डाल लिया है हम ने पर नटवर भी खूब नाचता है
सुन्दर रचना बहुत ही सुन्दर
""नूतन वर्ष मंगलमय हो....आप की लेखनी साहित्य व ज्ञान का सृजन करे आप को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ""
hum jitna kannha ke kareeb hote jayenge kannha ki yaad hame utni hi vayakool karti jaygi or ek vakt aayega ati virah ki vaidna mai in aankho se aansu bahenge or mere kannha kuch yun musekarayege.
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