शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

हो गया भागना बेकार,मैया से अब पड़ेगी मार

छोटी-छोटी हथेलियाँ

आँखों को है मसल रही

डर से हालत कैसी है

आँखें उसकी कह रही


माँ के हाथ में लाठी देख

सुदर्शन धारी भी रो रहे

इसे प्रेम की पराकाष्ठा नही

तो और बताओ क्या कहे


रो रो के गला है भारी

आँखें भी हैं हुई बेहाल

कौन कहे इसे परमेश्वर

ये तो बस मैया का लाल


कहते जिसे देख भय भी कांपे

कैसे उनकी सिसकियाँ चल रही

रूदन के वेग से कैसे उनकी

गले की माला भी है कांप रही


रस्सी का बंधन नही है ये

प्रेम पाश में बंध गए कन्हैया

वात्सल्य प्रेम में ऐसे डूबे कि

बाँध गयी उनको यशोदा मैया


प्रेम का आदान-प्रदान ही तो

प्रभु का एकमात्र है काम

ऐसे नित्य प्रेमी को मै

करूँ बारम्बार प्रणाम,बारम्बार प्रणाम.

5 comments:

RAVINDRA ने कहा…

jai Radhey Krishna

RAVINDRA ने कहा…

jai Radhey Krishna

Patali-The-Village ने कहा…

यही तो प्रभु की माया है |जय राधे कृष्ण |

vandana gupta ने कहा…

भाव विभोर हो गयी हूँ………………उसी प्रवाह मे बह गयी हूं……………कितना सुन्दरता से चित्रण किया है भावो का कि यूँलगा जैसे साक्षात सामने ही घटित हो रहा हो………………सच उसकी इस महिमा और प्रेम को नमन ही कर सकते हैं हम जैसे तुच्छ प्राणी।

Prabhat Sharma ने कहा…

Marvelous Creation ! While reading it feels like that this is happening in front of our yes.


It gives us real love,

Radhe Radhe !!