बुढापे की मार,बीमारियों का प्रहार
घरों में कलह ,बाहर अत्याचार
समय से पहले हो रही मौत
जिंदगी ऐसी जैसे तलवार की धार
फिर भी जीए जा रहे हैं लोग
सुख मिलता नही पर ढूँढ रहे हैं लोग
पाने के बाद भी कुछ शेष रह ही जाता
उस अधूरे की पीछे ही भाग रहे हैं लोग
मर जाते हैं पर उम्मीदें नही मरती
ख्वाहिशें साँस के साथ ही है थमती
देखते हैं कुछ भी साथ नही जाता
पर इच्छाओं पे जोड़ नही चलती
छोटे - बड़े सब हैं आज मर रहे
पर सोचते शायद मै नही मरूंगा
दुर्घटनाएं बनी हैं पड़ोसियों के लिए
मै तो हमेशा यूं ही रहूँगा
हर क्षण दिख रहा है प्रमाण
कोई किसी को क्या बताएगा
आँखों के सामने ही होते हैं अंधेर
कोई और हमें क्या दिखायेगा
कोई नही कह सकता जो सुबह
घर से निकला शाम को वो लौटेगा
बेटे बाप के सामने मर रहे
इससे बुरे दिन कोई और क्या देखेगा
फिर भी खुश है लोग
आदत हो गई है खुशी ढूँढने की
हादसे हो रहे सामने
सीख ली है आदत आँखें मूंदने की
हर चीज आजमाएंगे
हर रिश्ते को अपनाएंगे
हर कदम पे ठोकर खायेंगे
फिर भी भगवान को ठुकराएंगे
सुख तो है सिर्फ कृष्ण के पास
कोई और दे नही सकता
तभी तो हर जगह भटक कर भी
कही सुख नही मिलता
आशा-निराशा,मौत-बुढ़ापा
हर चीज से ऊपर है कृष्ण की भक्ति
इसमे न कोई खतरा,न नुकसान है
जितनी करो उतनी ही ये बढती
1 comments:
bahut khoobsurat bhav hain, bhakti me doobe hue...achchha lga
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