ये जगत नही है घर मेरा
मुझे अपने घर बुला ले श्याम
मेरी जिंदगी तेरी सेवा फिर
इस जग में मेरा क्या काम
खोखले रिश्तें,झूठे नाते
पग-पग पर माया का बाजार लगा.
बाँध कर इन रिश्ते-नातों में
खुद को मैंने कहाँ-कहाँ नही ठगा
बहुत हुई ये ठगी-ठगाई
अब तो पास बुला ले कन्हाई
तोड़कर अपने सब बंधन
अब तेरे साथ बंधने मै आई
हार चुकी मै अलग हो तुमसे
तेरे बिना मुश्किल अब जीना
हँसना तो मै भूल चुकी पर अब
तो रोना चाहूँ पर आये न रोना.
गलती मेरी कि मैंने घर छोड़ा
पर छूटे का अब थाम ले हाथ
जान चुकी मै कि कोई नही मेरा
एक अकेले तुम ही हो मेरे नाथ
तेरे नाम में बस मिले आराम
दिल को भाये एक तेरा धाम
ये जगत नही है घर मेरा
मुझे अपने घर बुला ले श्याम
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