आत्मा का घर ही तो है
ये हमारी सुन्दर-सी काया
मिट्टी के इस घर पे ही
हमने कितना लेप लगाया
रगड़ - रगड़ घर को चमकाया
भाँति - भाँति से इसे सजाया
इसी घर के आगे -पीछे बस
कर दिया हमने जीवन जाया
ख़त्म हुआ जब सांसों का किराया
आत्मा ने कर्मों का झोला उठाया
किसी काम की न रह गयी काया
जिसके लिए हमने जीवन गंवाया
हर दिन ही कई घर खाली होते
रह जाता यही सब जमा - बकाया
अपनी तो साँसें चल रही है अभी
यही कह हमने दिल को बहलाया
कैसी है ये प्रभु की माया !!!
मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
कैसी है ये प्रभु की माया !!!
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