बुधवार, 9 दिसंबर 2009

भक्ति है एक मात्र सहारा

आहार,निद्रा,भय और मैथुन
ये तो पशु भी है करते
गौर करे तो हम भी बस
दिन-रात इसी में लगे है रहते

सुबह से शाम मेहनत करते
हेतु होता है बस भोग ही भोग
ये जीवन आप में है एक दुःख
उसपे पाले है और कितने रोग

रोग ही तो है ये भोग की प्रवृति
और अस्थायी से इतनी आसक्ति
रोग इस कदर है फ़ैल चुका कि
कडवी लगती है हमें प्रभु भक्ति

जितनी जकड़ी बीमारी है होती
उतनी ही दवा कडवी है लगती
माया से जकडे बद्ध जीवों को
भक्ति भी ऐसी ही है लगती

जितनी कडवी भक्ति हमें लगे
उतनी ही हमें आवश्यकता है
मुक्ति के लिए भक्ति करनी ही होगी
ये हर इंसान की विवशता है

जिसने जितनी जल्दी माना
उतनी ही जल्दी त्राण वो पाया
जो इसे समझ न पाया उसे तो
माया ने बड़ा ही नाच है नचाया

भक्ति है एक मात्र सहारा
भवसागर से उबरने का
सावरिया के चरण कमल को
प्रेम से पकड़ने का

5 comments:

Prabhat Sharma ने कहा…

लाख लाख टेक की बात कही है आपने !
वाकई में सिवाय भक्ति के कुछ भी उपाय नहीं है !
सुन्दर रचना व् सुन्दर भावार्थ !

हरेकृष्ण
क्षितिज

Dr. Tripat Mehta ने कहा…

wah kya baat hai..bahut khoob..
saawariya ke charan kamal ko prem se pakadne ka...
bahut umdha..
apke sundar najariye ko dekte hue kuch link send kar rahi hu..shayab aapko ache lage
drnaresh.com
virasat.com.au

Dr.Dayaram Aalok ने कहा…

बहुत बढिया रचना। आभार!

Shri"helping nature" ने कहा…

jai shri krishna

Unknown ने कहा…

लीलाधर की लीला समझ पाना बड़ा मुश्किल है. समझना है उनको गर तो दे दो उनको ये जो दिल है. ध्यान से भी समझ न आये ज्ञान से भी परे हैं वो. उसको ही वो दरस दिखाते भक्ति से उनको भजता है जो. आँसू से जिसने चरण पखारे विरह वेदना से किया श्रृंगार. फिर कहाँ रुक पाते पाँव प्रभु के दौड़े आते हैं वो भक्त के द्वार. खट्टा - मीठा, कड़वा - नमकीन व्यंजन से नही है उनको सरोकार. बस भाव के ही तो भूखे हैं कृष्णा बस परसों उनको अपना प्यार . चंचल चितवन,मोहिनी सूरत अधर पे नाचे वंशी की तान . मुस्कान उनकी सुन्दर है इतनी कि बसते उसमे भक्त के प्राण. पाने को इनका, है सहज तरीका. छोड़ के सबकुछ,बन जा बस इनका. आगे की सोच न पीछे की सोच तेरा सब बोझ अब बोझ है इनका. घोंसला भी इनकी,बच्चा भी इनका जोडेंगे ये ही अब घोंसले का तिनका.