तेरी आस में हर साँस
रुक-रुक के चल रही है
कब आओगे गिरिधारी
बयार भी बदल रही है
मेरे आस के दीपक की लौ
बूझ-बूझ के जल रही है
जल -जल के पल-पल वो
तेरी ही राह तक रही है
जन्म-जन्म से प्यासी अँखियाँ
तेरे दर्शन को तरस रही है
पथराई अँखियों से भी
बूंदों की लड़ियाँ बरस रही हैं
भीगीं पलकें नैना छलके
धड़कन भी जैसे तड़प रही है
न साँसे ही चल रही है
न जान ही निकल रही है
अब तो आ जाओ गिरिधारी
इंतज़ार को जिन्दगी कम पड़ रही है
मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
कब आओगे गिरिधारी
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1 comments:
Meera ka prem ek sundar kavita ke roop me
Hare Krishna
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