शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

माला कर ले हरि को भज ले

माला करना है बड़ा आसान
इसका न है कोई कर्मकांड
जब भी चाहो ले लो नाम
इसका न है कोई कडा विधान

क्या पिता का नाम लेने में
करनी होती है कोई तैयारी
उसी सहजता से लेनी है
अब परमपिता की है बारी

तुलसी की माला हो और
उसमे मनके एक सौ आठ
सबसे ऊपर होता है सुमेरू
जहाँ होती माले की गाँठ

जहाँ से प्रारंभ होती माला वो
होता सुमेरू के बाद पहला मनका
सबसे पहले पढ़ते हैं क्षमा मंत्र फिर
यही से शुरू होता जाप महामंत्र का

एक-एक कर जब मनके सारे
हरि कीर्तन से ख़त्म हो जाते है
तब जाके एक बार फिर हम
सुमेरू पे वापस लौट कर आते हैं

यहाँ रखना होता है एक ध्यान
सुमेरू को हम पार नही है करते
दूसरी माला को करने के लिए
माला को दूसरी तरफ हैं पलटते

क्योंकि सुमेरू होते है साक्षात कृष्ण
फिर उन्हें हम कैसे लाँघ सकते है
एक सौ आठ मनके हैं उनकी गोपियाँ
जिनके चरण दबा कृष्ण तक पहुँचते हैं

इसी तरह करनी होती है हमें माला
पूरे दिन कभी भी बस सोलह बार
इतनी सी मेहनत तो करनी होती
और हो जाता भवसागर भी पार

इसे करने की विधि है बहुत सरल
ना कोई खर्च न ही कोई बंदिश
किसी धर्म का किसी जात का
इसमें किसी से हैं न कोई रंजिश

फिर आज से ही शुरू करे हम
सोलह माला का अपना अभ्यास
क्योंकि वक़्त बितता जा रहा
पर हमें नही हो पाता है आभास

2 comments:

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’

MAYUR ने कहा…

यूँही लिखते रहे और अपनी लेखनी से हिन्दी को बलवान विचार बनते रहे,
आप की ये पोस्ट माडर्न भी है अध्यात्मिक भी है
युवओंके लिए समझने में आसान भी
अपनी अपनी डगर
sarparast.blogspot.com