मंगलवार, 30 जून 2009

महामंत्र

हरे कृष्णा ! हरे कृष्णा! कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम ! हरे राम ! राम राम हरे हरे

सोलह अक्षरों का ये मंत्र, महामंत्र कहलाता है
कलयुग के दोषों से बस यही हमें बचाता है

शास्त्रों ने कहा इसके अतिरिक्त कोई उपाय नही
कलयुग में और कुछ भी हो सकता सहाय नही

सतयुग में तपस्या से पास हरि के जाते थे
त्रेता में यज्ञों से उन्हें हम पास बुलाते थे

द्वापर में करते थे लोग अर्चा-विग्रह की पूजा
कलयुग में महामंत्र के सिवा उपाय नही दूजा

इस घोर कल्मष के युग में प्रभु की कृपा है
वो बस हरी कीर्तन से ही हमें मिल जाते है

कोई फर्क नही है उनमे और उनके नाम में
महामंत्र से प्रभु को जिह्वा पे हम नचाते हैं

चित्त को हमारे शुद्ध करता है ये हरि कीर्तन
जप-जप के हरि नाम चमक जाता मन दर्पण

बड़ा ही सरल और सटीक तरिका है जीने का
न गवाए हम मौका इस अमृत्व को पीने का

बिना देर किये जहाँ हैं वही से कर दे शुरुआत
कर ले कमाई कुछ जब तक मौत करे आघात

फिर चिंता न हो कि कब मौत से पाला पड़े
जब भी प्राण छूटे दिखे बस प्रभु सामने खड़े

हरे कृष्णा ! हरे कृष्णा! कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम ! हरे राम ! राम राम हरे हरे

2 comments:

Prabhat Sharma ने कहा…

अति उत्तम !
अत्यंत सुन्दर रचना !
बहुत सुन्दर और भावः पूर्ण तरीके से आपने "महामंत्र" की जो व्याख्या की है !
शायद ही आज तक किसी ने की होगी !
इस रचना से "महामंत्र" के महत्तव ,उसकी उत्पत्ति को बहुत अच्छी तरह से समझा जा सकता है !

आपने तो सीधे और सरल शब्दों में जीवन को उसके लक्ष्य तक पहुचने तक का रास्ता दिखा दिया है !

आशा करता हूँ की प्रत्येक पाठक आपकी इन पंक्तियों पे अमल करेगा !

"बिना देर किये जहाँ हैं वही से कर दे शुरुआत
कर ले कमाई कुछ जब तक मौत करे आघात"

शुभकामनाएं

हरेकृष्णा
क्षितिज

bilaspur property market ने कहा…

"श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव"