सोच यही की तू मुझसे
रूठ गया
लगे जैसे मेरा तो सब कुछ
लूट गया
तेरे बगैर मेरा क्या है
वजूद
समंदर से अलग जैसे एक
बूँद
तडपे जैसे मछली बिन
पानी
मेरी भी हो गयी वही
कहानी
तेरा विरह है बड़ा
दुखदाई
छोड़ दे कान्हा अब
निठुराई
बेचैन आत्मा तड़पती है
आठों पहर
तू मुझसे ऐसे न
रूठा कर
बुधवार, 24 जून 2009
तू मुझसे ऐसे न रूठा कर
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1 comments:
pabkhudi, bahut achcha likha hai.
mere blog par aapka swagat hai, aisi hi ek rachna padhne ko milegi.
swagat hai.
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