एक शीतलता मिलती है
विचारों को
तेरे सानिध्य में
सानिध्य तेरे नाम का
तेरी लीलाओं के गान का
तेरा स्मरण कर
मन शुद्ध हो जाता है
लेकर तेरा नाम
स्वाद अमृत्व का आता है
देखे जब तेरी मूरत
तुझपे प्यार बहुत आता है
लेकिन जब भी भौतिकता में फंस
तुझसे दूर चली जाती हूँ
वो दूरी अब सहन न होती
आत्मा लौटने को बेचैन हो जाती है
मन तड़प-तड़प सा जाता है
उसे चैन कही न आता है
कन्हैया तू जिसे भा जाता है
फिर वो कहीं और कहाँ रह पाता है
गलती मेरी मै भटक जाती
पर तू दूर मुझसे न जाया कर
मेरी नादानी मै न आयी पर
कभी खुद भी तो आ जाया कर
न आ पाए तो कम-से-कम
मुझे तो पास बुलाया कर
तेरे ही तो आसरे हूँ मै
मुझे इतना न आजमाया कर
पर तू दूर मुझसे न जाया कर
बुधवार, 24 जून 2009
तू दूर मुझसे न जाया कर
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2 comments:
अंतर्मन की पीडा ही साक्षात्कार करा सकती है
पंखुडी आप बहुत अच्छा लिखती हो, हमें भगवान के नजदीक ले जाने के लिए धन्याबाद पंखुडी। लगता है पार्वती जी के सत्संग का और प्रभू भक्ति का आप पर गहरा असर हो चुका है। मेरे पोस्ट पढने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें - www.sushilkumarpatial.blogspot.com
धन्याबाद
सुशील कुमार पटियाल
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