रविवार, 10 मई 2009

गोलोक कैसा होगा











कभी - कभी सोचता है मन
गोलोक
कितना पावन होगा
जहाँ बैठे होंगे खुद
मोहन
कितना मनभावन होगा

मोहन की मुस्कान
मुरली की तान
उनके घुंघुरू भी
करते होंगे गान

पिताम्बर भी करती होंगी
बातें कान्हा के मोर - मुकुट से
इठलाती होगी वैजयंती माला
मै तो लिपटी हूँ खुद कान्हा से

गैया चराते गोपाल
उनकी सेवा में लगे
सहस्रों लक्ष्मियाँ
आध्यात्मिक प्रकाश से
प्रकाशित
दिव्य अलौकिक दुनिया

कुछ भी जड़ नही
हर चीज होगी चेतन
जल और वायु भी
होंगे वहां के पावन

कितने नसीबवाले होंगे
जिन्हें मिला होगा
ये दुर्लभ आध्यात्मिक जग

कितना सुखद होगा
वो अहसास
भक्त का सिर
स्वयं भगवान का पग

उनके चरणों की सेवा
मोहन का दर्शन
जहाँ होंगे खुद रसराज
वहाँ कितना होगा आकर्षण

निहारते - निहारते संवारे को
आँखें थकती नही होंगी
साथ में राधिका भी तो
वहाँ दर्शन देती होंगी

जुगल जोड़ी की ये छटा
कैसे आँखों में समाती होगी
आत्मा की हर प्यास
इससे तृप्त हो जाती होगी

साक्षात कृष्ण हो सामने
भक्त क्या कर पाता होगा
उन्हें देखने के बाद भी
क्या सुध-बुध रह जाता होगा

नज़री क्या साँवरे के मुख से
कभी हट पाती होंगी
जब भी नज़र उस मोहनी
सूरत पे जाती होगी

कुंठा, कलह
मिलन , विरह

प्रेम की लहरी,
सुख का सागर

आनंद ही आनंद
इस जगत में जाकर

जिसकी कल्पना मात्र से
मेरा रोम - रोम पुलक रहा
बेचैन हो रही आत्मा
दिल दर्शन को तड़प रहा


वो गोलोक कैसा होगा

2 comments:

Prabhat Sharma ने कहा…

अति सुन्दर ! इतनी प्यारी और भक्ति से ओत-प्रोत गोलोक की व्याख्या अपने आप में प्रभु के प्रति श्रधा और शब्दों का एक बेजोड़
संगम है ! इस व्याख्या को पढ़ के तो मेरे मन में गोलोक की लालसा जग गयी है ! वाकई आज की दुनिया जो लोग अस्थाई सुख के पीछे भाग रहे हैं ,उन्हें ये समझना चाहिए की इस लोक में तो सुख है ही नहीं ,और जिसे वो सुख समझ रहे हैं वो अस्थाई है !! "सुखः वो भी स्थाई ,तो सिर्फ और सिर्फ प्रभु के लोक में हैं -- गोलोक में है !! "

मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें ,
हरी आपके इस प्रयास को सफल बनाएं और हर पाठक को गोलोक का महत्व समझ आये !
यही कामना करता हूँ !

निशांत मिश्र - Nishant Mishra ने कहा…

मान्यवर, हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. आशा है कि हिंदी में ब्लॉगिंग का आपका अनुभव रचनात्मकता से भरपूर हो.

कृपया मेरा प्रेरक कथाओं और संस्मरणों का ब्लौग देखें - http://hindizen.com

आपका, निशांत मिश्र