हे परमपिता , हे जगत के स्वामी
तेरी मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिलता
फिर किसी पे इल्जाम और कलंक भला
कोई अपनी मर्जी से कैसे लगा सकता
इसस पहले कि मै और बिखरूं
टूटूं और टूटे खुद पे विश्वास
तू दिखायेगा जरूर ही कोई रास्ता
इतनी तो हैं अब भी आस
तूझे तो सब दिखता है
तू तो सब जानता है
फ़िर ये विमोह कैसा
मुझे क्यूँ नही थामता है
इंसान दे नही सकते हैं जवाब
इसलिए तुझसे ही पूछती हूँ प्रश्न
कहाँ जाऊं मै तू बता दे एक बार
तू ही तो कहता,तेरी हूँ मै अंश
मेरी भक्ति ऐसी नही कि तू स्वीकारे
मेरी भक्ति ऐसी नही कि तू स्वीकारे
चित्त भी है मेरा , माया से मैला
तो तू ही दे सकता हैं न ऐसा चित्त
जिसमे बस हो तेरा ही नाम फैला
भक्ति भी तो तू ही देगा
शक्ति भी तो तू ही देगा
मेरी तो बस यही है विनती
शक्ति से मुझमे भक्ति जगा देगा
एक विश्वासी को
अब तो भक्त बना लो
उसका कोई नही
अब तो उसे अपना लो
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