माया की डोर से
नाच रहा है हर इन्सान यहाँ
पर डोर पकड़ी है किसने
इसपे ध्यान देने को वक्त ही कहाँ
तेरी सब लीला
तेरी ही है ये सब माया
तेरा हिस्सा शाश्वत आत्मा
तुझमे ही दी है ये भौतिक काया
अपने हर कर्म को आज से
करती हूँ मै तुझ पे समर्पण
इसे ही प्रसाद समझ ग्रहण करो
कुछ और नही करने को अर्पण
अब कर्म तो है मेरा
पर उसका फल है तेरा
तुझसे ही होगा माया का अँधेरा
तू ही लाया ज्ञान का सवेरा
कर्म मेरा इसलिए कि
तूने कहा है इसे करने को
तूने ही तो आदेश दिया
आत्मा को इस शरीर में रहने दो
भक्ति के चरम पे ला
कर लो मुझे प्रभु अपने संग
जान चुकी सब माया यहाँ
हो चुका अब मेरा मोहभंग
शनिवार, 10 जनवरी 2009
मोहभंग
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