शुक्रवार, 15 मई 2015

हे नाथ मेरे ! हे गिरवरधारी


हे नाथ मेरे !  हे गिरवरधारी 
करुणा के सागर 
हे बांकेबिहारी.

क्या-क्या न दिया तूने हमे 
पर भूलने की 
पुरानी है आदत हमारी.

कुछ भी न दो अब हे नाथ मेरे 
ह्रदय में बसा दो बस 
अपनी सूरत प्यारी.

मन में बसा के सांवली सूरत 
होंठो से लेते तेरा नाम 
ऐसे ही बीते जीवन सारी.