चोरी करते दधी और माखन
खुद ही चोरी हो गए मोहन
कैसे छुपने को जगह ढूँढ रहे
जिनका है ये सारा त्रिभुवन
मुख में है माखन लिपटाये
और नीर भरे है लोचन
हाथ पकड़ ली गोपी ने
संकट में है संकटमोचन
मात यशोदा का डर दिखलाये
गोपियाँ नटवर को आज नचाये
थक थक जाए छाछ पिलाए
देख देख सब हिय हरसाए.
ता ता थैया करे कन्हैया
जब जब चाहे वृज की वाला
कहते जिसे जग का रखवाला
क्या यही गोकुल का ग्वाला ?
3 comments:
वाह मनमोहिनी प्रस्तुति
सादर नमन |
आभार ||
कान्हा का हर काम निराला..
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