शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

क्यूं मै जाऊं सन्नाटे में मरघट पे,जब वो बजा रहा वंशी पनघट पे.

नृत्य करता है
वंशी बजाता है
आनंद लुटाता है
हमें बुलाता है

फिर क्यूं ये लाल चोला
क्यूं ये मौन की पाबंदी
क्यूं मूँद लूं ये आँखें

क्यूं न सजूँ मै उसके लिए
क्यूं न गाऊं मै सदा उसके गुण
क्यूं न निहारूं उसकी छवी

क्यूं मै जाऊं सन्नाटे में
मरघट पे
जब वो बजा रहा वंशी
पनघट पे.

उसके बिना जंगल में
मुझे स्वीकार नही ये वैराग्य
कान्हा के साथ
इस जग में ही है सौभाग्य.

1 comments:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच है, सगुण श्रेष्ठ है, कम से कम कोई आधार तो है।