गोविन्द जो खींचे अपनी ओर
कैसे न भागे सब कुछ छोड़.
न दिखे फिर निशा और न भोर
दिखे तो बस एक कोमल डोर.
कभी शून्य चेतन,कभी भावविभोर
उनसे रिश्ता निभाने चली,बाकी तोड़.
मोहन से मिलन की प्यास
है ऐसी आंधी घनघोर.
जिसे रोक न पाए कोई खुशी
न ही कोई विपदा घोर.
और जब बुलाये वंशी,
पुकारे मोहन.
फिर कैसे संभले,
कैसे संभाले
और
कैसे न भागे सबकुछ छोड़...
3 comments:
गोविन्द जो खींचे अपनी ओर
कैसे न भागे सब कुछ छोड़.....bahut hi sundar rachna....
कान्हा मुरली मधुर बजाये..
भागो भागो मोहन के पीछे तभी भला होगा जीवन का .
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