शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

कैसे न भागे सबकुछ छोड़...

गोविन्द जो खींचे अपनी ओर
कैसे न भागे सब कुछ छोड़.

न दिखे फिर निशा और न भोर
दिखे तो बस एक कोमल डोर.

कभी शून्य चेतन,कभी भावविभोर
उनसे रिश्ता निभाने चली,बाकी तोड़.

मोहन से मिलन की प्यास
है ऐसी आंधी घनघोर.
जिसे रोक न पाए कोई खुशी
न ही कोई विपदा घोर.

और जब बुलाये वंशी,
पुकारे मोहन.
फिर कैसे संभले,
कैसे संभाले
और
कैसे न भागे सबकुछ छोड़...

3 comments:

avanti singh ने कहा…

गोविन्द जो खींचे अपनी ओर
कैसे न भागे सब कुछ छोड़.....bahut hi sundar rachna....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कान्हा मुरली मधुर बजाये..

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

भागो भागो मोहन के पीछे तभी भला होगा जीवन का .