अजन्मा के नाभिकमल से जन्मे
इस जगत के स्रष्टा ब्रह्मा .
पर देख प्रभु की बाल लीला
वो भी रह गए थे अचंभा.
संदेह का एक पल था वो
प्रभु की माया ने लिया घेर.
पर देख प्रभु की अद्भूत लीला
उनकी बुद्धि भी हो गई ढेर.
तत्क्षण पहचान लीलाधर को
आ पहुँचे वो शरण में.
माया से बचने का तरीका है
बस मायापति के ही चरण में.
जब ब्रह्मा जी की ऐसी हालत
फिर हमारी क्या बिसात है.
उस पर भी कलयुग के जीव
संदेह में जीते दिन-रात है.
लेना चाहे तो ले ले सबक
उन हाथों में दे दे अपनी डोर.
एक तो माया के झंझट छूटेंगे
दूजा आनंद का भी न होगा छोर.
3 comments:
सच्ची बात।
दमदार बात कही है।
बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें.
एक टिप्पणी भेजें