मंगलवार, 20 सितंबर 2011

शायद भूले दिल को ,उसकी याद है आयी.

शायद भूले दिल को
उसकी याद है आयी.
याद आया उसका साथ
सिर पे अपने उसका हाथ.

तभी तो ये खालीपन
शांत मन,शांत जीवन
कोई हलचल ही नही
हिलोरे खो गई कही

कैसे न हो दिल में उदासी
कैसे न बहे आँखों से नीर.
पिता से इतनी बढ़ गई दूरी
जैसे नदी के हो दो तीर.

सारी भूले करके क्षमा
अपना ले मुझको फिर से.
कैसे जीए बूँद अकेला
लड़के अपने समंदर से.

1 comments:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उसके संग का विश्वास ही पर्याप्त है सागर पार करने के लिये।