बुधवार, 13 जुलाई 2011

दो बूंदे ढलकी होंगी आज फिर हमारे परमपिता के गालों पर.



फिर दहला गए धमाके हमे
कानो को चीरे ये सिसकियाँ.
इंसानियत का नमो निशान नही
इंसानों की है ये कैसी दुनिया.

झूठे अहंकार और मरे हुए संस्कार
अपनी ही आत्मा के है ये गद्दार.
रोती है आत्मा ऐसे शरीर में आकर
जिसका इंसानी रूप और जंगली व्यवहार.

किस चीज की लड़ाई,कैसा है ये बदला
जिसने बदल दिया है मानव का मन.
भूल गया कि सब परमपिता की संतान
और सब है उसके अपने ही परिजन.

दो बूंदे ढलकी होंगी आज फिर
हमारे परमपिता के गालों पर.
उनकी सबसे खूबसूरत संतान
इंसान की इंसानियत के सवालों पर

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

निश्चय ही मन रो उठता है।

अवनीश सिंह ने कहा…

ये किसी भगवन को नहीं मानते है | बस हिंसा ही इनका परम धर्म है | ईश्वर इनको कभी क्षमा नहीं करेंगे |

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