फिर दहला गए धमाके हमे
कानो को चीरे ये सिसकियाँ.
इंसानियत का नमो निशान नही
इंसानों की है ये कैसी दुनिया.
झूठे अहंकार और मरे हुए संस्कार
अपनी ही आत्मा के है ये गद्दार.
रोती है आत्मा ऐसे शरीर में आकर
जिसका इंसानी रूप और जंगली व्यवहार.
किस चीज की लड़ाई,कैसा है ये बदला
जिसने बदल दिया है मानव का मन.
भूल गया कि सब परमपिता की संतान
और सब है उसके अपने ही परिजन.
दो बूंदे ढलकी होंगी आज फिर
हमारे परमपिता के गालों पर.
उनकी सबसे खूबसूरत संतान
इंसान की इंसानियत के सवालों पर
हमारे परमपिता के गालों पर.
उनकी सबसे खूबसूरत संतान
इंसान की इंसानियत के सवालों पर
4 comments:
निश्चय ही मन रो उठता है।
ये किसी भगवन को नहीं मानते है | बस हिंसा ही इनका परम धर्म है | ईश्वर इनको कभी क्षमा नहीं करेंगे |
I'm not that much of a internet reader to be honest but your blogs really nice, keep it up!
realistic and emotional no word to say.
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