भवसागर की लहरें मुझको बहाये
कभी डुबोये तो कभी किनारे लाये
न छोड़े ये मुझको न अपना बनाये
जैसे माँ हो सौतेली और लाड़ दिखाए .
दूर हूँ मै घर से,ये इसको पता है
बहकावे में फँस गई ये मेरी खता है.
रेत में कितने ही महल बनाए मैंने
पर इन लहरों ने सबको ही डुबोया .
डुबो के कहती बना फिर से महल
फिर से बनाया और फिर से डुबोया.
बहुत छला इन लहरों ने मुझको
अब थपेड़े इसके सहे न जाते.
पता चला है कोई इसके भी ऊपर
चलती न इसकी उसके आते.
मजे की बात वो है मेरे साथ
हाँ, मै न थी कभी भी अनाथ.
थक गई अब थाम ले हाथ
कहाँ छुपे हो हे जग के नाथ.
1 comments:
भक्तिभाव का गहन आस्वाद...धन्यवाद
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