बुधवार, 30 मार्च 2011

थक गई अब थाम ले हाथ,कहाँ छुपे हो हे जग के नाथ.

भवसागर की लहरें मुझको बहाये
कभी डुबोये तो कभी किनारे लाये

न छोड़े ये मुझको न अपना बनाये
जैसे माँ हो सौतेली और लाड़ दिखाए .

दूर हूँ मै घर से,ये इसको पता है
बहकावे में फँस गई ये मेरी खता है.

रेत में कितने ही महल बनाए मैंने
पर इन लहरों ने सबको ही डुबोया .
डुबो के कहती बना फिर से महल
फिर से बनाया और फिर से डुबोया.

बहुत छला इन लहरों ने मुझको
अब थपेड़े इसके सहे न जाते.
पता चला है कोई इसके भी ऊपर
चलती न इसकी उसके आते.

मजे की बात वो है मेरे साथ
हाँ, मै न थी कभी भी अनाथ.

थक गई अब थाम ले हाथ
कहाँ छुपे हो हे जग के नाथ.

1 comments:

तदात्मानं सृजाम्यहम् ने कहा…

भक्तिभाव का गहन आस्वाद...धन्यवाद