जब तक उसकी शरण न लेंगे
कौन कर सकता रक्षा हमारी.
कहने भर को बड़ी-बड़ी बातें
बिना आधार के होती ये सारी.
अभय चरण बस है उसके
उससे दूर हर जगह है भय.
कोई आरक्षण,कोई दिवस
बना नही सकता हमें निर्भय.
जो घिरा है अपनों की भीड़ में
वो अकेला ही चला जाता है.
जो साथ उसके रहता है
उसे लेने वो खुद आता है.
होना है गर आजाद,पानी है सुरक्षा
तो उसे तो कब से इंतजार है.
उठा कर दोनों हाथ, कह दो एकबार
तुझपे ही मेरा सारा दारोमदार है.
हे गोविन्द ही तो कहा था
बस पहुँच गए गिरधारी.
लाज बचाई द्रौपदी की
साड़ी बन गए बनवारी.
बिक जाता है बेमोल वो
बस पुकार लो एक बार.
ऐसे सुरक्षा फिर वो देता
जो दे न सके कोई सरकार.
4 comments:
अति उत्तम ! एक उम्दा कटाक्ष है ये सरकार की व्यवस्था पर !
सत्य है ! की सिर्फ और सिर्फ एक गोविन्द ही हैं जो सुरक्षा दे सके हैं हर भय से !
सुन्दर रचना !
बधाई
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
bahut karara Vyangya hamari vyavastha pr badhai sarthak rachna k liye
नमस्कार
आपका ह्रदय से आभारी हूँ ,
आपने मुझे प्रोत्साहित किया यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ताकि और
भी प्रगति कर पाऊं ....आपका धन्यवाद
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