शुक्रवार, 11 मार्च 2011

जिंदगी कितनी क्षणिक,पल भर में खो जाए!

जिंदगी कितनी क्षणिक

पल भर में खो जाए.
हवा का झोंका तूफ़ान बनके
बनके लहरें कभी सुनामी

ले जाए उडाए
दूर हमसे बहाए.
फिर न रहे ये हमारी जिंदगानी.

जिंदगी कितनी क्षणिक
पल भर में खो जाए.

फिर भी क्यूँ इतना
भरोसा है सबको.
मर जायेंगे सब पर
सदा रहना है हमको.

मृत्यु है एक ऐसा सत्य
जाने सब पर माने नही.
सोचे कि नजरों से इसकी
हम बच जाए कहीं.

क्यूँ ऐसी जिंदगी
जहाँ निश्चित है मरना.
क्यूँ न चुने हम उसको
जहाँ सदा ही जीना.

हाँ,ऐसी भी जिंदगी
जहाँ सुख ही सुख है.
न कभी कोई पीड़ा
न ही मरने का दुःख है.

जिंदगी एक इस जिंदगी के बाद
अंत के बाद जिसकी होती शुरुआत.
करनी है बस थोड़ी- सी तैयारी
आगे थाम लेंगे खुद बनवारी.

बढ़ाना है हाथ
आगे थाम लेंगे वो.
मरता नही कभी
शरण में है जो.

देर नही होती कभी भी
सदा उसके दरवाजे खुले ही रहते.
खड़ा हूँ कबसे इंतजार में तेरे
खुद ही वो अक्सर कहते.

फिर क्यूँ ऐसी जिंदगी
जो है क्षणिक.
पल भर में खो जाए.