तू इतना दयालु कैसे कान्हा
करूणा से ही तू बना है शायद .
मुझ जैसे पर भी इतना कृपा
जिसने सदा बस की शिकायत.
तुझको छोड़ा,घर भी छोड़ा
तोड़ के आ गई सारे नाते तुझसे.
पर तुझे सदा फिक्र रही मेरी
मेरा भला सोचे तू बेहतर मुझसे.
बैठ के दिल मेरी राह तके तू
और मै बाहर की दुनिया में खोई.
फिर भी तूने साथ न छोड़ा
इतना इंतजार कहाँ करता कोई.
तू अकारण ही दयालु कान्हा
और मैंने कितने शर्त्त लगाए.
तू अंदर ही तो बैठा था लेकिन
मैंने तेरे होने पर भी प्रश्न उठाये .
फिर भी तू आज भी मुझे चाहे और
मुझे अभी भी गलती का भान नही .
तेरी नजरे मुझसे कभी नही हटती
पर मुझे अभी भी तेरा ध्यान नही.
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