मन की पीड़ा
दिल का दर्द
सबकी बस एक
तू ही दवा
मेरे कान्हा,मेरे मालिक
तुझसे ये दूरी
कब होगी पूरी
कब तक रहूँ मै यहाँ
मन को न भाये
झूठे ये रिश्ते
कैसे निभाऊ इन्हें
मै जाऊं कहाँ
रोती हैं आँखें याद में तेरी
बाबला हुआ है ये मन
कैसे किसी को दूं ये जीवन
मेरा ये जीवन कहाँ मेरा रहा.
तू है जहाँ
मुझे ले चल वहाँ
चरणों में अपनी
अब दे दे पनाह
मेरे कान्हा,मेरे मालिक
तेरे बिना मेरा कोई कहाँ ..........................................
1 comments:
बहुत परेशान हूँ आज खुद से ही
अब ठौर कहाँ पाऊँ?
अब तो आ जाओ प्रियतम
तुम सा और कहाँ पाऊँ?
अब इसके बाद और क्या कहूँ?
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