अवगुण हैं मुझमे
अनगिनत माना
पर तुम मुझसे
कभी रूठ मत जाना.
सुन रहे हो न कान्हा.
माया को मैंने
करीब से है जाना.
नचाया बहुत उसने
अब तुम न नचाना.
सुन रहे हो न कान्हा.
रिश्तों ने नातों ने
हर किसी ने आजमाया.
तेरे सामने टिक न पाउंगी
अब तू भी मत आजमाना
सुन रहे हो न कान्हा.
जिस-जिस को बुलाया
कोई भी न आया.
तुझे न भी पुकारू
तो तुम मुझे बुलाना.
सुन रहे हो न कान्हा.
मेरे दिल की जरूरत हो तुम
तुम ही इस जिंदगी का ठिकाना.
पहले इस दिल को दफना देना
जिस दिन मेरे दिल से हो तुझे जाना .
सुन रहे हो न कान्हा.
तुझे तो सब मालूम है
तुझे क्या बताना,तुझसे क्या छिपाना .
पर बताती हूँ तुझसे
कभी इन अंखियों से छुप मत जाना.
सुन रहे हो न कान्हा.
तेरे बिन मुश्किल
हैं अब रह पाना.
अब तो हर पल मुझे
तेरे साथ ही है बिताना.
सुन रहे हो न कान्हा.
कोई काम हो तो कर लो
करके सदा के लिए मेरे पास आ जाना.
जब बुलाऊ तब ये नही कि
तुम कोई बहाने बनाना.
कभी दूर मुझसे न जाना,
सुन रहे हो न कान्हा.
2 comments:
अरे इतनी श्रद्धा और भग्तिपुर्वक कहा जा रहा है तो वो सुनेंगे नहीं क्या?
यहाँ आकर ब्लॉग के पढने-लिखने के सारे उद्देश्य पूरे होते हुए से लगते है...
कुंवर जी,
..सुन रहे हो न मेरे कान्हा जब तुम्हारे चाहने वाले बुलाये तो तुरंत चले आना...
""मेरे गोविन्द ""
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