शनिवार, 14 अगस्त 2010

ये कैसी आजादी,ये कैसी स्वतंत्रता है

हम मरना नही चाहते
फिर भी मर ही जाते हैं.
जवानी पे ठहरना चाहते पर
पर बुढ़ापा कहाँ रोक पाते हैं.

कौन चाहता है अस्पतालों के चक्कर
पर बिना चाहे भी लगाते हैं.
रहना चाहते हैं सदा स्वस्थ
पर बीमार क्यों पर जाते हैं.

क्यों हम बाढ़ से बहाए जाते हैं
क्यों हम सूखे से सुखाये जाते हैं.
प्रकृति हर कदम पे बांधे है हमें
हम उसके द्वारा नचाये जाते हैं.

हम तो अपनी इन्द्रियों के भी गुलाम
वो भी हमें यहाँ-वहाँ दौडाती है
क्या-क्या दुष्कर्म नही करवाती है
कहाँ-कहाँ नही भरमाती है.

न सुनानेवाली हम सुनते हैं
न खानेवाली चीजे हम खाते है
जिससे बच्चों को हम रोकते
उसे देखने से खुद को नही रोक पाते हैं.

हमारा परिवार,हमारा परिवेश
हमारे मन के हिसाब क्यों नही मिलता.
क्यों एक बच्चा अमीर के घर तो
दूसरा गरीब के घर है जन्मता

किस चीज में हम स्वतंत्र है
क्या हम मर्जी से कर पाते हैं.
पग-पग पर समझौता करते
और आजाद कह खुद को बहलाते हैं.

1 comments:

Prabhat Sharma ने कहा…

Words are less to say !
Excellent !

Hare Krishna