शनिवार, 10 जुलाई 2010

सुन्दर-सुन्दर कृष्ण कन्हैया,हाथ में वंशी साथ में गैया


सुन्दर-सुन्दर कृष्ण कन्हैया
हाथ में वंशी,साथ में गैया

दाऊ पुकारे कह के कान्हा
लल्ला कहती है उनकी मैया

जीवन की धूप में है छैंया
भवसागर की है वो ही नैया

मटकी फोड़ी,माखन भी लूटा
उसपे ये नखरे हाय दैया

मन का मीत,जन्मों का साथी
राधारानी का है वो सैंया

सुन्दर-सुन्दर कृष्ण कन्हैया
हाथ में वंशी,साथ में गैया

4 comments:

vandana gupta ने कहा…

जय हो……………बहुत ही मधुर गीत्।

बेनामी ने कहा…

ब्लोग खोलते है प्यारे से नटखट कृष्ण कन्हैया की खूबसूरत सी तस्वीर देख कर मन खुश हो गया और जब खुद को उनके पास बैठे पाया तो बड़ा गुस्सा आया दुष्ट ने आज तक नही बताया कि उसकी आँखों से जो चुपके चुपके आँसू बहते हैं उनते कितने और कौन से उसके और कौन से मेरे हैं? पलट कर भी नही देखा ऐसा गया दुष्ट.
एक बार नही कई बार ऐसा किया उसने इस पापिन के साथ. मिलेगा तो जरूर पूछूंगी -' दुष्ट! मेरा अपराध तो बताते?'
भजन ????? मेरी प्रतीक्षा को और बढा गया,बबुआ!
इसे मेरा पागलपन कह सकते हो पर...वो ही जानता है मेरे प्रेम को.मेरी रगों में खून के स्थान पर प्रेम,प्यार उसी ने भरा है. दुष्ट कहीं का.
तुमने फिर याद दिला डी जिसे मैं याद ही नही करना चाहती क्या कहूँ इस आर्टिकल के लिए तुम्हे बधाई? या ढेर सारा प्यार ?जो तुम्हारी मर्जी पर बहुत भावुक कर गया तुम्हारा ये सब कुछ मुझे.

अरुणेश मिश्र ने कहा…

सबसे पहले हम आपका ब्लाँग खोलते हैं . मनमोहक भजन ।

bilaspur property market ने कहा…

कान्हा