सुना है इस दुनिया से दूर
एक अलग दुनिया है तेरी
जहाँ न दुःख है न आँसू है
खुशियों से भरी दुनिया है तेरी
तेरी दुनिया इतनी खूबसूरत है
तो हम उससे इतने दूर क्यों हैं
तू आनंद का सागर
फिर हम इतने मजबूर क्यों हैं
मुझे पता है इसका जवाब
ये गलती भी हमने की है.
हम उसके भी काबिल नही
जितनी कान्हा ने दी है.
हमें थी चाहत एक
अलग दुनिया बनाने की
हमें हुई थी तमन्ना
बाप से अलग घर बसाने की.
औकात नही थी पर
चले थी अलग एक हस्ती बनाने को
पता ही नही था कि
माया खड़ी है हमारी हस्ती मिटाने को
खा-खा के माया के थपेड़े
जर्जर हो गया है ये दिल
अब तो दिल भी यही कहता
कन्हैया जल्दी से मुझे मिल
गलती का अह्सास हो गया
पर सुधारने की काबलियत मुझमे नही
जिस कारण तुझसे दूर हूँ इतनी
तू ही कर सकता उस गलती को सही.
जैसी भी हूँ तेरी ही हूँ
कही और नही मेरा ठिकाना
अब तेरी मर्जी है कान्हा
ठुकराना या चरणों से लगाना
शुक्रवार, 21 मई 2010
तेरी मर्जी है कान्हा ठुकराना या चरणों से लगाना
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3 comments:
बहुत सुन्दर रचना!
वाह!........
ये समर्पण!ये गलती का एहसास!
पता नहीं कब हमें होगा ये एहसास,कब होगा हम में ये समर्पण!
अब मर्जी है उसकी.......आप भी तो यही कह रही हैं....
कुंवर जी,
प्रशंसनीय ।
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