निर्मल नशा है तेरा नाम प्रभु
जो भक्त के सिर चढ बोले
कभी प्रेम में वो नाचे-गाये तो
कभी विरह में वो रो ले.
नाम में ही उन्हें प्रभु
दर्शन दे जाते हैं
नाम से जिह्वा पे
प्रभु को वो नचाते हैं.
बातें न होती हो उनकी
ऐसा न होता है कोई दिन
प्रभु और उनका नाम एक ही
नाम से कहाँ हैं प्रभु भिन्न
नाम है शुरुआत भक्ति की
और नाम पे ही है अंत
नाम ही दिखलाता है प्रभु का
धाम,रूप और लीलाएं अनंत
नाम से प्रेम भक्त को
प्रभु प्रेम तक ले जाए
क्योंकि कलयुग में प्रभु
नाम रूप में ही हैं आये.
चढ जाए तो उतरे नही
ऐसा नशा ये नाम का है
आँखों में जो बस जाए
ऐसा जलवा श्याम का है.
2 comments:
भावप्रवण रचना .बधाई ।
shri radhe
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