मंगलवार, 26 मई 2009

कभी तो खुलेगा ये तेरा द्वार

कान्हा अब तो सुन ले करुण पुकार
दर्शन को कब से खडी हूँ मै तेरे द्वार

द्वार अगर अब भी नही खुला फिर
भी करूंगी मै ताउम्र इसका इंतज़ार

जानू मै तेरे पास मेरे जैसे है बहुतेरे
पर मेरे जीवन का तो तू ही आधार

एक नही कई कंस है भरे यहाँ पे
कदम-कदम पे दिखे दुस्साशन हज़ार

कहाँ बचूँ, किस- किस से बचूँ,बता
तेरे सिवा मै करुँ किसपे ऐतवार

तुझे बुलाया फिर खुद चली आयी
पड़ जायेगी नज़र मुझ पे एक बार

मुझे बुला ले या तुझे आना पडेगा
लौटूंगी नही मै यहाँ से अबकी बार

तू न मिले तो ये जीवन भी रख ले
तेरे बिना मेरा ये जीवन है बेकार

कभी तो सुनोगे कान्हा तुम मेरी पुकार
कभी तो खुलेगा मेरे लिए ये तेरा द्वार

1 comments:

Prabhat Sharma ने कहा…

सुन्दर रचना !
आपकी रचना से आपकी पुकार में भरे हुए भावों का पता चलता है !

आपकी करूँ पुकार कान्हा ज़रूर सुनेंगे !

सिर्फ और सिर्फ आस्था और सब्र बनाये रखें !

शुभकामनाएं
क्षितिज