सोमवार, 6 अप्रैल 2009

परम लक्ष्य







जीवन का परम लक्ष्य

है भक्ति प्रभु की

उसको बस भूल हम

सेवा करते सभी की


अध्यात्म उसे समझ न आये कभी

जो भौतिकवादी दिमाग है लगाता

जिसे प्रभु समझ में आ जाते

वो कभी उनपे प्रश्न नही उठता


किसकी ऐसी सत्ता

जैसी है बनवारी की

किस में इतनी शक्ति

जितनी है गिरवरधारी की


सम्पूर्ण ऐश्वर्य के स्वामी है

जो है हम सबके परमपिता

जिनके संकल्प मात्र से पूर्ण हो

जाये जो जग में असंभव दिखता


उनकी सत्ता को दे चुनौती

वो सूर्य को दीया दिखाता है

काल के चक्र में पड़ता जब

एक दिन वो मूर्ख भी पछताता है


ऐसे शक्तिशाली पिता की

संतान है हम

जिसे भूल हम भटके आज

जगत में हरदम


बड़े दयालु है

हमारे परमपिता

क्षमा कर देते

वो हमारी हर खता


बस एक बार हम

उनकी तरफ बढा कर तो देखे

बस जरुरत है पग बढाने की

आगे तो वो खुद थाम लेते


एकबार जो थाम

लिया उन्होंने

फिर तो सब कुछ

खुद थम जाता

थम जाती ठगनी माया

काल भी नही

कर पाता फिर

उसका तो बाल - बांका


उनके भक्त का

विनाश नही होता

खुद कहा है उन्होंने

इस सत्य को

समझा और परखा

प्रभु को पाया है जिन्होंने