शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

प्रभु से प्रीत जोड़ ले








खुद को छलता है

इंसान बांधकर खोखले

रिश्तों में


आरोप लगाता

विधाता पे

जब टूटते रिश्ते

किश्तों में


ये कोई होनी

नही

न ही किस्मत का

खेल है


ये तो है एक

सत्य सृष्टी का

जिससे हमारा होता

समय पे मेल है


एक ही है संसार में

चाहे ऊपर कह लो

या कह लो नीचे


उससे बड़ा न

हुआ कोई न ही

कोई उससे आगे - पीछे


एक शरण मिल गयी उसकी

फिर जग से

क्या लेना देना

वैसे भी जग क्या

उसकी माया का

एक खिलौना

माया खेले हमसे

जब तक हम न

प्रभु के पास हैं


माया उसके पास न

फटके जो भी

प्रभु के दास हैं

इंसानों ने उठकर

प्रभु से प्रीत जोड़ ले

इससे पहले कोई तोडे

खुद ही नाता तोड़ ले