खुद को छलता है
इंसान बांधकर खोखले
रिश्तों में
आरोप लगाता
विधाता पे
जब टूटते रिश्ते
किश्तों में
ये कोई होनी
नही
न ही किस्मत का
खेल है
ये तो है एक
सत्य सृष्टी का
जिससे हमारा होता
समय पे मेल है
एक ही है संसार में
चाहे ऊपर कह लो
या कह लो नीचे
उससे बड़ा न
हुआ कोई न ही
कोई उससे आगे - पीछे
एक शरण मिल गयी उसकी
फिर जग से
क्या लेना देना
वैसे भी जग क्या
उसकी माया का
एक खिलौना
माया खेले हमसे
जब तक हम न
प्रभु के पास हैं
माया उसके पास न
फटके जो भी
प्रभु के दास हैं
इंसानों ने उठकर
प्रभु से प्रीत जोड़ ले
इससे पहले कोई तोडे
खुद ही नाता तोड़ ले
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