रविवार, 4 जनवरी 2009

प्रेम कर तो कृष्णा से कर




प्रेम की हर पराकाष्ठा तो

दर्शा गए हैं कृष्ण कन्हैया

माँ-बेटे का प्रेम दिखाया

चाहे देवकी हो या यशोदा मैया


राधारानी से प्रेम के लिए

वो तो है जग - जाहिर

हर रिश्ते को निभाने में

वो रहे हैं सदा माहिर


रुक्मणी को भी दिए

उसके अधिकार सारे

सबको प्यार दिया

जिसके भी थे वो प्यारे


द्रोपदी की लाज बचायी

जब थी वो संकट में घोर

उस समय उसकी नैया थामी

जब सबने दिया भँवर में छोड़


मित्रता की मशाल दे गए

वो सुदामा संग निभाकर

कहाँ कोई कर पाया ऐसा प्रेम

आज तक उनसे आगे जाकर


अर्जुन से इतना प्रेम कि

दे गए गीता का ज्ञान

इसमे छुपा था प्रेम हर मानव से

जिसका होता है अब भान


विदुर की साग खाई

प्रेम में ही आकर

जो चले गए

दुर्योधन का मेवा ठुकराकर


मीरा की अखंड भक्ति की

भी रखी थी मर्यादा

सबसे प्रेम करे वो एक- सा

किसी से कम, न किसी से ज्यादा


जिस-जिस ने उसने प्रेम किया

वो भी है महान

जिससे उन्होंने प्रेम करा

उनका क्या करूँ बखान


ऐसे प्रेम के सागर को छोड़

और किससे कोई प्रेम करे

दूसरे किसी से प्रेम हो भी नही सकता

कितना भी उसे प्रेम का नाम धरे


प्रेम कर तो कृष्णा से कर

कृष्णा की तरह कर

न कर आगे - पीछे सोचकर

प्रेम कर सब छोड़कर