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गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

जाना तो है ही कान्हा को व्रज से,पर साथ में किस-किस को ले जाए.



अपने बछड़े से बातें करे गोपाल
बछड़ा है उसका आज बड़े उदास.
पूछा उनसे कि क्या है परेशानी
क्या कोई हो गई है बात खास.

आँखों में नीर भरके वो बोला
मैया कहती है तू चला जाएगा.
फिर कौन खेलेगा मुझसे कान्हा
और साथ मुझको कौन खिलाएगा.

तेरे सिवा कोई भाषा न समझे
न ही कोई नाम लेकर बुलाये.
कैसे जाएगा छोड़कर मुझको
मेरे लिए ही तू गोविन्द कहाए.

जब से सुनी है मैया की बातें
मुझको अब कुछ नही सुहाता.
लेकर चलना साथ में मुझको
तू अगर कही और है जाता.

धीरज धराए कान्हा उसको पर
समझाना क्या खुद ही न समझ पाए.
जाना तो है ही कान्हा को व्रज से
पर साथ में किस-किस को ले जाए.

ये रथ जा रहा किस ओर,कहाँ चले हे नंदकिशोर.

ये रथ जा रहा किस ओर
कहाँ चले हे नंदकिशोर.
जा रहा क्यूं व्रज को तू छोड़
हमसे सारे रिश्तों को तोड़.

ज़रा बता दे गलती हमारी
हो गया क्या हमसे कसूर.
क्षण का विरह सहा नही जाता
जा रहा तू अब इतनी दूर.

दिन को बांसुरी बजा बुलाया
रात को संग में रास रचाया.
कैसी आग लगी मथुरा में कि
तूने आज वो सब कुछ भुलाया.

प्यार था तेरा या था छलावा
अपनापन का था वो दिखावा.
हम तो ठहरी गावं की ग्वालन
प्रेम समझ उसे सिर पे चढ़ाया.

व्रज के रक्षक कहलाते थे और
आज प्राण हमारे लिए जा रहे.
हम हुए थे तेरे सबको छोड़
आज जाके अपनी किसे कहे.

निकुंज की बातें,कुञ्ज की क्रीड़ा
क्या सब थी वो तेरी चाल.
हो गए तुम कैसे निर्मोही कि
दिखता नही तुझे हमारा हाल.

बिन देखे तुझे मर भी न पाए
जीने की तो आस ही नही.
सोचना भी हो रहा है दुष्कर
कि होगा कान्हा पास नही.

यूँ न हम तुझे जाने देंगी
रोक दो रथ यही-का-यही.
हमसे होकर गुजरेगा होगा
अगर तुझे जाना है कही.

तुझसे हम और तू ही न हो
ऐसी जिंदगी हम क्या करे.
तेरे बिना जीने से अच्छा
सामने ही हम तेरे मरे.