शनिवार, 2 जनवरी 2016

!! मंदिर के बाहर इतने भिखारी न होते जितने मंदिर के भीतर हैं होते !!


समझदारों के समाज में कहते है लोग कि
तीर्थों में बढ़ गए हैं भिखारी.
जहाँ जाओ वहीं माँगने आ जाते कितने
निपटना हो जाता है इनसे भारी.

सही हो सकती है उनकी भी बातें पर
वे भी तो प्रभु से मांगने ही है जाते.
फर्क इतना कि वे मांगते मंदिर के भीतर
शायद इसलिए भिखारी न कहलाते.

 कुछ खाने को, कुछ पहनने को माँगा
तो देते हैं अक्सर उन्हें फटकार
ऊपरवाले के दिए से,दिया गर थोडा तो
इसमें किया क्या हमने उपकार.

पर खुद  जब मांगते हैं प्रभु से ये लोग
मांगों की कोई सीमा न होती.
न कोई उपकार, न कोई अहसान
न ही हया आँखों को कभी धोती.

मंदिर के बाहर इतने भिखारी न होते
जितने मंदिर के भीतर हैं होते.
पर कभी बांकेबिहारी को देखा किसी ने
किसी को भगाते या गाली देते.

भिखारी जब मांगे तो भी कहे
साहिब भगवान् के नाम पर कुछ दे दो
पर ये न नाम लेते न साहिब ही मानते
इनके लिए तो बस दे दो, दे दो.

न करे हम गुमान अपने चंद सिक्कों पर
न करे  अपमान किसी गरीब का.
भगवान् से बड़ा भी भला कोई धनी यहाँ
हर जीव है बच्चा उस अमीर का.