मेरा मोहन मुझसे
कहीं खो गया.
ढूंढूं उसे मै
कहाँ-कहाँ जाके.
बाट निहारी मेरी उन्होंने
मैंने ही कर दी देर
आते-आते.
मुड़-मुड़ कर देख रहे थे
कहते हैं सब कि वे
जाते-जाते .
चहल-पहल बाग़-बगीचे
वे सब तो थे बस
छलाबे.
आना-जाना बसना-बसाना
ये सब तो थे बस
भूलाबे
कह गए उन्हें हम कि
हम अभी आए.
पर आके हम वापस फिर
जा ही न पाए.
ऐसी थी रौनक चमक-दमक
भूल गए वो राह देखे अपलक.
यहीं कहीं तुम हो
ये मुझको पता है.
मेरी भी हालत
छुपी नही तुमसे.
जैसी भी हूँ मै,जहाँ भी हो तुम
थामोगे मुझको बस एक तुम.
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