छोटी-सी जिंदगानी
पर बड़ी-बड़ी ये अभिलाषाएँ.
इतने पास था तू
पर दूर तुझसे मुझे लिए जाए.
ये इच्छाएं,ये आकांक्षाएँ
मन में थे मेरे, लिए घर बनाए.
तेरी तरफ एक कदम बढ़ाऊं
तो सौ कदम ये मुझे पीछे ले जाए.
ये मन ही था जड़
इन सारी फसादों को यही उपजाए.
रोकना मै चाहूँ इसे
पर वश में मेरे ये न आ पाए
एकदिन दिया मैंने इसे
तेरा नाम पिलाए
फिर तो मतवाला ये
उसी में डूबे उतराए
मुझ पे तो ये हुक्म चलाये
पर तेरे सामने इसकी न चल पाए.
गुरुवार, 22 मार्च 2012
मुझ पे तो ये हुक्म चलाये पर तेरे सामने इसकी न चल पाए
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2 comments:
वाह अद्भुत मन मतवाले को सही मय पिला दी।
सराहनीय प्रस्तुति |
बहुत बहुत बधाई ||
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