कभी यहाँ लुटाते,कभी वहाँ लिटाते,
लुट जाते एक दिन प्यार लुटाते-लुटाते.
लूटकर जब उन्हें सब चले जाते
तब हारकर वे प्रभु की शरण में आते.
न कुछ बचा होता लुटाने को
न कोई लूटनेवाले ही रह जाते.
झोली खाली,जीवन भी खाली
न कोई पास आते,न ही बुलाते.
ऐसे में भी अगर वो उन्हें पुकार ले
तो कब से राह देखते वे,दौड़े आते.
जिस हाल में हो,जिस काल में हो
वो कभी भी पात्र-कुपात्र नही विचारते.
वो लुटा हुआ भी हो जाता मालामाल
जब प्रभु अपने प्रेम का पान कराते.
फिर क्यूं भागे हम इसके-उसके पीछे
सीधे क्यूं न प्रभु से ही नेह लगाते.
मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012
लूटकर जब उन्हें सब चले जाते ,तब हारकर वे प्रभु की शरण में आते
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3 comments:
अहैतुकी कृपा...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
Bahut achchi rachna aur satya hai - hum haar kar hi prabhu ki sharan me kyun jayen?
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