और आया कृपा का सागर.
बात जोह रहे थे कब से उसकी
गोकुल में उसके नटवर नागर .
चिर संगी का साथ देने
आ गई हैं व्रज की महारानी.
गिरिराज भी झूम रहा
झूम रहा यमुना का पानी.
वृषभानु के आँगन में
गूँजी जो राधे की किलकारी.
यशोदा के पलने में सोये
झूम उठे वृन्दावन बिहारी.
व्रज की राज भी धन्य हुई
पड़े यहाँ जो राधे के चरण.
कैसे हुआ है मतवाला
देखो व्रज का कण-कण.
2 comments:
किशोरी इतना तो कीजै
लाडली इतना तो कीजै
जग जंजाल छुडाय
वास बरसाने को दीजै
बहुत सुन्दर लिखा है।
जय बोलो बरसानेवाली की।
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