बुधवार, 20 जुलाई 2011

इन ख़बरों से सबक ले और लौट चले देश,रहने लायक नही रहा अब ये पराया परदेश.

अस्सी साल की माँ को सड़क पे छोड़ गया बेटा
ये कल की ही तो खबर है.
फिर भी मशगूल है सब जीने में बचपन और जवानी
आने वाले बुढ़ापे से कितने बेखबर हैं.

बुढ़ापा जैसे बन गई अपनी विवशता और दूसरे पर बोझ
ऐसी खबरे श्रवण कुमार के देश से !
कपड़े और फैशन के साथ-साथ ये नए-नए संस्कार भी
मंगा रहे है हम विदेश से.

बुढ़ापे को आने से हम रोक नही सकते
और बुढ़ापे की लाठियाँ अब बनती नही.
जहाँ जाकर बुढ़ापे को भी मिले सूकून
होगी तो ऐसी जगह भी कही-न-कही.

है न! अपने परमपिता की वो गोद
और उनके चरणों की शीतल छाया
जहाँ कभी भी कोई बोझ नही बनता
चाहे जो भी हो जब कभी भी आया.

जहाँ है वही से हम कर दे शुरुआत
ये नही सिर्फ बुढ़ापे से बचने की बात.
यहाँ पग-पग पर है समस्याएं खड़ी
छोटे से दिन के बाद लंबी काली रात.

अगर हम प्रकाश को ही अपना ले तो
तो सोचो ये अँधेरा कहाँ रह पायेगा
फिर जन्म,मृत्यु,बीमारी और बुढ़ापा
ये सब कुछ भी नही हमे डराएगा .

ये कष्ट इसलिए है क्योंकि हम सब यहाँ
परदेश में आकर गलती से बस गए हैं.
वरना हमारे देश में तो आनंद-ही-आनंद और
प्रेम से आप्लापित रिश्तों में नित रस नए हैं.

इन ख़बरों से सबक ले और लौट चले देश
रहने लायक नही रहा अब ये पराया परदेश.
सच में जो है अपने वो हमारी राह देख रहे
जाने की तैयारी में लगा दे जीवन के दिन शेष.

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन में अपनत्व बना रहे, शेष निरर्थक है।

Vivek Jain ने कहा…

एकदम सत्य कहा है आपने,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

vishy ने कहा…

sundar

लिकं हैhttp://bachpan ke din-vishy.blogspot.com/
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राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

bahut tripti mili aaj man ko.....

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

सुंदर ...जन्माष्टमी की शुभकामनायें