मंगलवार, 12 जुलाई 2011

देख पाती बूँद-बूँद में उसकी कृपा, गर मेरा भी मन होता तुझसा सरल.

तू बूंदे बरसा रहा था

और उसने किस कदर उसे सहेजा.
जैसे खास उसके लिए हो
तुमने बूंदों से कोई सन्देश भेजा.

कभी वो नाचे,कभी वो गाये
ऊपर-नीचे पंखों को घुमाए.
कर रही थी तेरा शुक्रिया
जो तूने थे ये मेघ पठाए.

कितना सच्चा है उसका मन
विश्वास भी देखो कितना प्रबल.
उसने सोचा कि उसके लिए ही
तूने खास भेजा है ये शीतल जल.

शुक्रिया कहना हम उनसे सीखे
जो मूक रहकर भी कर जाती है.
हमे कितना भी मिल जाए पर
लब पर शिकायत ही आती है.

देख पाती बूँद-बूँद में उसकी कृपा
गर मेरा भी मन होता तुझसा सरल.
कण-कण में दिखती उसकी करुणा
गर मेरा ह्रदय होता तुझसा निर्मल.


5 comments:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
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कल 13/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर भक्तिमयी अभिव्यक्ति।

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

vidhya ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
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vijay kumar sappatti ने कहा…

आपके ब्लॉग को पहले भी पढता आया हूँ, कृष्ण भक्ति से सरोबार है आपकी रचनाये . कृष्ण महाप्रभु है .. उनकी असीम कृपा आप पर हो. यही प्रार्थना है ..


आभार
विजय

कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html