गुरुवार, 7 जुलाई 2011

क्यूं न समेट ले सदा के लिए शीतलता,बना ले कृष्ण को अपना जीवन आधार.

आयी जो बारिश मिला सबको सूकून
तपिश को मिटाए ये रिमझिम फुहार.
क्यूं न समेट ले सदा के लिए शीतलता
बना ले कृष्ण को अपना जीवन आधार.

हर कदम है यहाँ हजारों कष्टों की तपिश
सदा कोई-न-कोई ताप हमें झुलसाते रहते.
तरसते हैं हम खुशी की चंद बूंदों की खातिर
और ताउम्र हम उन बूंदों का इंतज़ार करते.

किसी को मिल भी जाती गर ये चंद बूँदे
तो उसके आगे-पीछे होती दुःख की लहर.
एक सपना-सा आकर चले जाते हैं सुख
और लहर में बह जाता ख्वाबों का शहर.

क्यूं ऐसी क्षणिक बूंदों के लिए करे प्रयास
जबकि हमारे पास है स्थायी सुख की आस.
ले ले कृष्ण की शरणागति,हो पूर्ण विश्वास
फिर होगी हर पल खुशी, हर पल उल्लास .

2 comments:

बेनामी ने कहा…

हरे कृष्ण पंखुड़ी जी - आपका ब्लॉग बहुत समय से पढ़ती आ रही हूँ - बहुत अच्छा लगता है -

मेरा कृष्ण तुम्हारा कृष्ण - कैसे ओट में छिप जाता कृष्ण
कितनी शीतलता देता - और कितना मोहे तड़पाता कृष्ण

इतना मोहक इतना सुन्दर - क्यों मोहे माया हाथ थमाता कृष्ण
मोहे अपने वृन्दावन में बुला ले - के तुझ बिन अब रहा ना जाता कृष्ण

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चिन्तामणि प्रकर सद्मषु कल्पवृक्षः....