सोमवार, 29 मार्च 2010

कैसे प्यार न करूँ तुझे

साँवरे की इन अंखियों को देख

नीगोरी अँखियाँ भी भर आयी हैं
जाने क्यों अब तक हमने ये
अँखियाँ कहीं और लगाई हैं

इन कजरारी अंखियों में
सारी दुनिया ही तो समाई है.
फिर भी हमने क्यों अपनी
अलग एक दुनिया बसाई है.

ये ओंठ जैसे कह रहे हो
अब आ जा मेरे पास
यूँ न ठोकरे खा
तेरा रिश्ता मुझसे खास

खास ही तो है वो पिता हैं हमारे
हमने अपने सम्बन्ध हैं बिसारे
पर वो अभी भी रिश्ते को निभाते
सदा हमारे लौटने की बाट निहारे.

आज जो ये पीड़ा हो रही दूरी की
वो किसी अपने के लिए ही होता है
दिल तब ही तड़पता है यूँ बेबस
जब गहरा रिश्ता कोई खोता है

मेरी तड़प बढ़ा रही ये तेरी आँखें
मुझे बुला रहे तेरे मासूम अधर
आत्मा बेचैन है लोटने को कान्हा
अब बता भी दे तेरे चरण हैं किधर

2 comments:

kunwarji's ने कहा…

तड़प...
भक्ति की शुरुआत भी कह दे तो क्या गलत होगा!

अति सुन्दर!सब और कृष्ण ही कृष्ण है.....
जय श्री राधे...

वीरेंद्र रावल ने कहा…

हे साधक बहन ,
आप कृष्ण को चाहती ही क्यों हैं वो तो हमें भूलकर श्री राधा जी को ही मना रहे हैं . आप तो वैसे ही उच्च स्थिति कि हो . उसे अपना स्वामी क्यों बना रही हो . उसकी उपेक्षा क्यों नहीं कर देती . मेरे जैसे निम्न श्रेणी जीव के लिए तो प्रगट वो हुआ नहीं पर आप जैसे सरल और पवित्र आत्मा के लिए वो बेबस हो जायेगा , फिर मेरे जैसे तुच्छ साधक के लिए आप उद्धार की बात कर देना . उस कृष्ण ने गोरख धंधा मचाया हैं पर जब आप उसकी कद्र करते हो तो वो भावखाता हैं .
आपकी सारी ब्लॉग पोस्ट देखने के बाद मैं तो यही सलाह दूंगा की एक बार आप रूठो तो सही . देखे ये प्यार एक तरफ़ा . राधा जी क्षमा करें पर कृष्ण जी सिर्फ आपको चाहते हैं . अब हममे आप जितनी योग्यता नहीं हैं इसीलिए आपसे चिढ कर यह टिपण्णी कररहूँ

आपके श्री चरणों में , आपका खोया स्व आत्मन
वीरेंदर रावल