बुधवार, 6 जुलाई 2011

पलट जाता है सबकुछ एक पल में कैसे|पत्ते से लुढके, बारिश की बूँद, अचानक जैसे||

पलट जाता है सबकुछ एक पल में कैसे

पत्ते से लुढके, बारिश की बूँद, अचानक जैसे.

हँसती-खेलती जिंदगी,विरान कैसे हुई
रोती आँखें पल में देखो कैसे चमक गई.

लगता जैसे हर चीज क्षणिक हो यहाँ पर
सुख का सवेरा हो या दुःख की हो दोपहर.

छोटी-छोटी चीजें भी,नही है यहाँ सदा के लिए
फिर कैसे सोच कि जिंदगी ये सदा हम जीये.

धोखा न दे हम खुद को,न औरो को झूठी दिलासा
बिना कष्ट के ताउम्र सुख से जीने की झूठी आशा .

इन क्षणिक चीजों के बीच एक चीज है स्थायी
जो न कभी कम होती और न जा सकती मिटायी.

कृष्ण और कृष्ण प्रेम,है सभी के लिए,सदा के लिए
कभी न घटे,जाने कितनों ने लिए,कितनों ने दिए.



2 comments:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ईश्वरीय प्रेम की थाह नहीं, सुन्दर पंक्तियाँ।

amrendra "amar" ने कहा…

aapke itne sunder blog ko sat sat naman ......
bahut sunder likhte hai aap......gajab ka adhyatm hai