गुरुवार, 31 मार्च 2011

जब भी आई कोई मुश्किल घड़ी,तो नजरें बरबस तुझपे ही पडी

जब भी आई कोई मुश्किल घड़ी

तो नजरें बरबस तुझपे ही पडी.

चाहे कहे कोई इसे मेरी नादानी
पर तुझसे ही बाँटी सदा परेशानी.

सबकी निगाहों से जिसे छुपाया
वो राज भी मैंने तुझको बताया.

मेरी हर बात का है राजदार तू
मेरे जीवन का भी तो आधार तू.

उतार-चढाव हो जैसा भी दौर
न ढूँढे कभी ये आँखें कोई और.

तुझसे ही बाँटू मिले जो खुशी कही
आँसू भी बहे सबके सामने नही.

जैसी भी जो हूँ तेरी ही हूँ मै
तू तो मेरा है सदा से कान्हा.

माना कि देर हो गई आते-आते
पर अब सब कुछ तुझे ही माना.

चाहूँ भी मै तो जाने न देना
और तू भी कभी न दूर जाना .

1 comments:

तदात्मानं सृजाम्यहम् ने कहा…

कल ही सोचा था पढूंगा फिर काम ज्यादा आ गया तो नहीं पढ़ पाया। आज फिर एक बार सारी रचनाएं पढ़ गया...बड़ी गहराई है आपके हृदय में, भक्ति का अजस्र प्रवाह है...आध्यात्मिक अनुराग कितना अच्छा है...। ये आपके उद्गार कहते हैं, कि टिप्पणी मत करो, पढ़ो और डूब जाओ...साभार